Wednesday 15 January 2020

इश्क ..कल ...आज और कल

सर्दियों सा इश्क हमारा !
ढूंढता है,

फिर -
प्यार की वह गुनगुनी धूप ,
चहकता, इठलाता, इतराता यौवन ,
पहाड़ी के उस छोर पर ,
जहां सूरज के साथ,

 प्रेम की पहली किरण उगी  थी,
और  प्रस्फुटित हुआ था,

रिश्तों का नया संसार,

बर्षो बाद - 
आज फिर मैं वहीं हूँ ,
बिल्कुल वही हूँ,
वही हवायें हैं ,
वही फिजायें हैं ,
कुछ.. कुछ अलसाई

सर्द सुबह भी वही है,
नहीं है .... तो बस ! 
तुम.....और 
साथ… तुम्हारा ….!!
****शिव प्रकाश मिश्रा *****
जनवरी 15, 2020 


Sunday 15 December 2019

बारिश की गुजारिश

ऐ उड़ते हुए काले बादल इतनी मेहरवानी करना, 
                             पहले जाकर मेरे गाँव में बारिश करना ,


दर्द और खुशियों का साथी रहा मेरा वह कच्चा मकान, 
                                पहले जाकर उसे मेरा प्रणाम कहना, 


गिर न जाय कहीं मेरे बिना गस खाकर इस बारिश में, 
                               उसकी उम्र का तुम थोडा लिहाज करना, 

किश्तियाँ कागज की मेरे हांथों से बनी, 
                      होंगी इस पार या उस पार कहीं, मेरी यादों में सनी,

ढूंढना मेरी निगाहों से, उसी हसरत से उन्हें चुन लेना, 
                            फिर उन्हीं हाथों से, मेरे चौपाल में तैरा देना,

मेरे बगीचे में अब बचे होंगे  सिर्फ  बांस और बबूल, 
                                जो भी हों सबको सलीके से नहला देना,

गाय बांधी थी मैंने खूंटी से खुले मौसम में, 
                       भीग न जाय बारिश में, उसे छप्पर में पहुंचा देना,

एक गौरैया भी रहती है मेरे आंगन में, 
                  भूखी रह जाय न इस बारिश में, कुछ दाने वहीं डलवा देना, 

मंदिर के चबूतरे पर मेरे दोस्त लोटते होंगे, 
                प्रेम से खूब भिगोना उनको पहले, मैं न आ पाऊंगा फिर बतला देना,

जश्ने-बारिश मनेगा किसी बगीचे में, 
              आम आंधी के अब नसीब में नहीं मेरें, मेरा हिस्सा भी वहीं बंटवा देना. 
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                                 - शिव प्रकाश मिश्रा 
                                    मुम्बई, १७.०६.२०१९ 
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इश्क ..कल ...आज और कल

सर्दियों सा इश्क हमारा ! ढूंढता है, फिर - प्यार की वह गुनगुनी धूप , चहकता, इठलाता, इतराता यौवन , पहाड़ी के उस छोर पर , जहां सू...